भूटान - चीन संबंध और भारत | Daily News Editorials | Bhutan's China Connection Implications for India | NSTFDC.IN
! भूटान-चीन संबंध !
चीन और भूटान के बीच सीमा समझौतों के मामले में हुए वार्ता के इस 25वें दौर का आयोजन वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण मानवीय पहलू को दरकिनार करता है। इसमें चीन और भूटान के बीच सीमा के परिसीमन और सीमांकन के कार्यों पर सहयोग समझौते का हस्ताक्षर किया गया है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा समझौतों के प्रमाणीकरण को बढ़ावा देना है। भारत की चिंताओं के बावजूद, भूटान और चीन के बीच संबंध और सीमा समझौते के प्रति भारी संवादना है।
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भारत चिंताएँ / INDIA CONCERNS :
- भूटान के साथ भारत के गहरे संबंधों के चलते, भारत को चीन के साथ भूटान के राजनयिक संबंधों और सीमा समझौते के सबंध में सावधान रहने की जरूरत है।
- यह समझौता वर्ष 2016 में हुई अंतिम चरणीय सीमा वार्ता के बाद से विकसित हुआ है और सीमा समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- इन संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू है क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में, खासकर भारत के पूर्वी हिमाचल प्रदेश के साथ, जो चीन के सीमा के बहुत क़रीब है।
- हालांकि भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंधों और सीमा समझौते के मुद्दे पर भारत की चिंताएं हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि भूटान ने अपने संबंधों को स्वागतपूर्ण बनाने और चीन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने की गर्म संभावना दिखाई है।
- भारत और चीन के बीच डोकलाम क्षेत्र के मुद्दे पर सतर्कता है, जिसमें भारतीय सैनिकों ने डोकलाम क्षेत्र में चीन की सड़क निर्माण को रोकने के लिए कदम रखा था।
- इस क्षेत्र की रणनीतिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इसके मुद्दे को सुलझाने के लिए भूटान की भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि चीन और भूटान इस क्षेत्र पर समझौता करते हैं, तो इससे भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से उसके पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँच पर खतरा हो सकता है।
- भारत के साथ भूटान के अद्वितीय संबंध ने भी भारत को एक महत्वपूर्ण सुरक्षा साथी दिया है, और इससे भारत की सुरक्षा हितों को सुनिश्चित किया जाता है।
- इसके अलावा, भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद के बावजूद, भूटान ने चीन के साथ संबंधों को बढ़ाने और सीमा समझौते के मामले में सावधानी बरती है, जिससे भारत को भरोसा है कि भूटान अपने सुरक्षा हितों और रेड लाइन के पालन की गारंटी देगा।
- इन रेड लाइनों में एक रेड लाइन है कि सीमा विवादों को अग्रसर करने के प्रक्रिया में भूटान ने दक्षिणी डोकलाम की चोटियों से दूर रहने की बड़ी प्राथमिकता दी है, जिससे भारत के 'सिलीगुड़ी कॉरिडोर' की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- यह बड़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सीमा जो किसी भी दोनों देश के बीच नहीं पार की जा सकती है, उसे 'रेड लाइन' के रूप में माना गया है।
- दूसरी रेड लाइन यह है कि सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने और सीमा पर चीनी सैन्य की स्थायी उपस्थिति के लिए अपने दरवाजे को धीरे-धीरे खोलने के मामले में भूटान अत्यंत सतर्कता बरता रहा है।
- इससे भारत को यह यकीन है कि भूटान चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों में भी अपने हितों की रक्षा करेगा और सीमा पर चीनी सैन्य की बढ़ती उपस्थिति के खिलाफ गारंटी देगा।
- इन सब आपद्ध रेड लाइनों के पालन के माध्यम से, भूटान ने भारत के साथ उसके अद्वितीय संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और यह भारत की सुरक्षा हितों की रक्षा में मददगार है।
- इसके साथ ही, भूटान ने चीन के साथ संबंधों को मजबूती से बढ़ाने और सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्रयासों में भारत को भरोसा दिया है कि वह अपने सुरक्षा हितों का आदर करेगा।
चीन-भूटान संबंधों के प्रभाव / Impact of China-Bhutan relations:
सुरक्षा निहितार्थ / Security Implications:
- चीन की बढ़ती उपस्थिति और प्रभाव भूटान में भारत के सुरक्षा हितों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत कर सकती है, विशेष रूप से डोकलाम पठार क्षेत्र में, जो भारत, भूटान और चीन के त्रिकोणीय (tri-junction) स्थित है।
- भारत और चीन के बीच डोकलाम क्षेत्र के मामले में वर्ष 2017 में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई थी, जब भारतीय सैनिकों ने भूटान के दावे वाले विवादित क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क निर्माण को रोकने के लिए कदम उठाया था।
- यदि चीन और भूटान एक सीमा समझौते पर पहुँचते हैं जिसमें डोकलाम भी शामिल होता है, तो इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँच को खतरे में डाल सकता है, विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से।
- भारत भूटान पर अपना सुरक्षा प्रभाव भी खो सकता है और उसे चीन और पाकिस्तान के साथ संभावित द्विमुखी युद्ध परिदृश्य से निपटना हो सकता है।
आर्थिक निहितार्थ / Economic implications:
- भूटान और भारत के बीच एक मजबूत आर्थिक संबंध है, जो मुख्य रूप से जलविद्युत सहयोग पर आधारित है। भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), सहायता (aid) और ऋण का सबसे बड़ा स्रोत है।
- भारत भूटान की बिजली का भी आयात करता है, जिसका भूटान के राजस्व का लगभग 40% हिस्सा है। यदि भूटान चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाता है, तो इससे भारत पर उसकी निर्भरता कम हो सकती है और भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
कूटनीतिक निहितार्थ / Diplomatic implications:
- भूटान और भारत के बीच एक विशेष संबंध है जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों पर आधारित है। भारत वर्ष 1949 से ही भूटान का निकटतम सहयोगी और संरक्षक देश रहा है, जब दोनों देशों के बीच एक संधि (भारत-भूटान शांति एवं मित्रता संधि, 1949) पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- इस संधि ने भारत को भूटान की विदेश नीति और रक्षा पर महत्वपूर्ण नियंत्रण प्रदान किया। हालांकि भूटान को अधिक स्वायत्तता देने के लिए वर्ष 2007 में इस संधि को संशोधित किया गया था, फिर भी भारत भूटान के विदेशी मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अवसंरचना और कनेक्टिविटी / Infrastructure and Connectivity:
- यदि भूटान चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) में शामिल होता है, तो इससे क्षेत्रीय अवसंरचना और कनेक्टिविटी पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत BRI के रणनीतिक और सुरक्षा निहितार्थों को लेकर चिंता करता है।
क्षेत्रीय संगठनों में प्रभाव / Influence in regional organisations:
- चीन के साथ भूटान के सीमान्य रुप से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में भारत के प्रभाव को प्रभावित कर सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया / India's response:
- भारत की प्रतिक्रिया मुख्य रूप से सतर्कता और सुरक्षा संबंधी होगी। भारत चीन के सीमा विवादों के मामले में सदैव सतर्क रहता है और यह सुनिश्चित करना चाहेगा कि भूटान के साथ किए जाने वाले सीमा समझौते भारत की सुरक्षा और स्थिति को प्रभावित नहीं करते।
- भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि वह भूटान के साथ अपने संबंधों को जड़ी बांधे रखे, जिससे वह अपने गुणवत्ता और सुरक्षा के गंभीर मुद्दों को सुनिश्चित कर सके, जैसे कि डोकलाम क्षेत्र और पूर्वी हिमाचल प्रदेश की सुरक्षा।
अंत में, भारत को चीन-भूटान संबंधों की विकास और चीन के साथ किए जाने वाले सीमा समझौतों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है, जो भारत के स्थानीय और क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ साथ उसके संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण घड़ीबाज हैं।
यहां कुछ लोगो के सवाल ? (RAJASTHANI GURU)
भूटान चीन का हिस्सा क्यों नहीं है?
भूटान, तिब्बत के विपरीत, चीन का आधिपत्य कभी नहीं था। 1910 में ब्रिटिश शासन के दौरान यह ब्रिटिश आधिपत्य के अधीन आया, लेकिन चीन ने इसकी सीमा को कभी भी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है।
भूटान देश की रक्षा कौन करता है?
भूटान एक प्रोटेक्टोरेट स्टेट है, जिसका मतलब है कि इसकी रक्षा और विदेश नीति का प्रमुख जिम्मेदार भारत है। भारत भूटान की विदेश नीति के मामलों को देखता है और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर है। इसका मतलब है कि भारतीय सेना भूटान की सुरक्षा को संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार है और यदि भूटान को किसी आक्रमण का सामना करना पड़ता है, तो भारत उसकी सहायता करेगा।
भूटान भारत का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया?
भूटान ने 1910 में हुई संधि का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने खुद को अन्य राज्यों से अलग रखने की गारंटी पाई थी, क्योंकि 1910 की संधि के तहत उन्हें आतंरिक स्वायत्तता की गारंटी दी गई थी. जून 1947 में भूटान ने भी इसी प्राथमिकता को दिखाते हुए लॉर्ड माउंटबेटन को एक ऐसे पत्र में लिखा था जिसमें कहा गया था कि भूटान भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहता।
भूटान भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
भूटान भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत और भूटान के बीच द्विपक्षीय संबंध हैं, जिनमें विशेष संबंध का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके परिणामस्वरूप, भूटान एक सुरक्षित राज्य के रूप में उपस्थित होता है, जबकि भारत का संरक्षित राज्य नहीं होता। भारत भूटान की विदेश नीति, रक्षा और वाणिज्य पर प्रभाव डालता है, जिससे इसके संबंध बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।