भारत का एकीकरण : Read Political Integration of India and India GK in Hindi
भारत का राजनीतिक एकीकरण
1. स्वतंत्रता संग्राम के समय की स्थिति :
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारत ने अपनी राजनीतिक स्थिति को समर्थन और एकीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस समय भारत के तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजन हुआ ।
A. 'ब्रिटिश भारत के क्षेत्र' -
इसमें लंदन के इंडिया आफिस और भारत के गवर्नर-जनरल के सीधे नियंत्रण में थे ।
B. 'देसी राज्य' (Princely states) -
ये रियासतें अपने स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्वतंत्र थे, लेकिन उनके राजा ब्रिटिश सरकार के साथ सामझौते के तहत रहते थे ।
C. 'औपनिवेशिक क्षेत्र'-
इसमें फ्रांसीसी और पुर्तगाली बाह्य आपत्तियां थीं, जैसे कि चन्दननगर, पाण्डिचेरी, गोवा, आदि. ।
2. 1947: स्वतंत्रता के बाद :
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने राजनीतिक एकीकरण का कार्य शुरू किया। स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने इन विभिन्न क्षेत्रों को एक राजनीतिक इकाई के रूप में एकीकृत करने के लिए प्रयास किए।
3. समझौते और सहमति :
भारत सरकार ने सांवरकरी सहमति और अन्य सामझौतों के माध्यम से रियासतों के साथ समझौते किए, जिससे भारत एक एकीकृत राजनीतिक इकाई बन गया।
4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का योगदान :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के समय राजनीतिक एकीकरण को प्राथमिकता दी और विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं के साथ मिलकर इसे सफल बनाने के लिए कई प्रयास किए।
इस प्रक्रिया में, भारत ने स्वतंत्रता के बाद एक एकीकृत देश के रूप में विकसित होने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिससे देश ने अपनी एकता और समृद्धि की दिशा में अग्रसर होने में सफलता प्राप्त की।
भारत की एकता का इतिहास
1. स्वतंत्रता संग्राम और रियासतों का एकीकरण :
सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारत स्वतंत्र रियासतों में बाँटा गया था। 15 अगस्त 1947 को लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने जानबूझकर चुनी थी, और इसके बाद भारत एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में विकसित हुआ। सरदार पटेल के नेतृत्व में हुए रियासतों के एकीकरण के प्रयासों से भारत ने एक संघ में जुड़कर अपनी एकता को मजबूती से दिखाया।
2. भोपाल का एकीकरण :
भारतीय संघ का एकीकरण कार्य के चलते, भोपाल भी एकीकृत राष्ट्र में शामिल हुआ। नवाब हमीदुल्लाह खान के प्रेरणास्पद नेतृत्व में, भोपाल ने स्वतंत्रता के पथ पर कदम से कदम मिलाकर भारतीय संघ में शामिल होने का निर्णय किया। इससे भारतीय एकता में एक और महत्वपूर्ण पृष्ठ जोड़ा गया और स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत गणराज्य की नींव रखी गई।
3. आजादी के दौरान रियासतों का एकीकरण :
A. सरदार पटेल के प्रयास (1947) :
भारत की स्वतंत्रता के दौरान, सरदार पटेल ने भारतीय संघ में 562 देशी रियासतों को शामिल करने के लिए प्रयास किए। इस कठिन कार्य में जूनागढ़, हैदराबाद, और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतें स्वेच्छा से भारतीय संघ में शामिल होने की स्वीकृति दी।
B. माउण्टबेटन प्रस्ताव (1947) :
माउण्टबेटन के प्रस्ताव के अनुसार, 565 रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विचार किया गया। इस प्रक्रिया में अधिकांश प्रिंसली स्टेट्स ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया, जिससे भारत संघ का गठन हुआ।
C. सरदार पटेल और वीपी मेनन का महत्वपूर्ण योगदान :
सरदार पटेल और वीपी मेनन ने इस एकीकरण कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत एक एकीकृत राष्ट्र बना। इससे स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय गणराज्य की नींव रखी गई।
बचे रहे राज्यों का इतिहास :
आखिरी विलय: भोपाल का अद्वितीय संघ :
बचे रहे राज्यों में - हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर, और भोपाल। इनमें से भोपाल विलय ब्रिटिश भारत संघ में सबसे आखिरी विलय हुआ। जूनागढ़, कश्मीर, और हैदराबाद को सेना की सहायता से विलय करवाया गया, लेकिन भोपाल में ऐसा करने की आवश्यकता नहीं थी।
भोपाल के नवाब :
भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान का समय ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ उठा। उन्होंने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर, और गिन्नौर को जीत कर अपने राज्य को स्थापित किया।
रियासत की स्थापना :
1723-24 में, भोपाल की स्थापना औरंगजेब के आफगान योद्धा मोहम्मद खान द्वारा की गई थी।1728 में मोहम्मद खान की मृत्यु के बाद, उनके बेटे यार मोहम्मद खान ने भोपाल रियासत का पहला नवाब बना।
ब्रिटिश साम्राज्य का सामरिक अधीनता :
1818 में, जब नवाब नजर मोहम्मद खान भोपाल के नवाब थे, तो भोपाल ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट बन गई थी अंग्रेज सरकार के साथ एंग्लो-भोपाल संधि के तहत।1926 में, नवाब हमीदुल्लाह खान बने, जिन्होंने ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के अंतर्गत भोपाल के नवाब के रूप में पदभार ग्रहण किया। वे अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षित थे और उन्होंने राज्य के मामले में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के समय भोपाल को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने का निर्णय लिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पक्षधर बने।
नवाब हमीदुल्लाह खान का योगदान :
नवाब हमीदुल्लाह खान ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और भोपाल को स्वतंत्रता दिलाने का निर्णय लिया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाई और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़कर भोपाल को स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया।
अंत में: भोपाल का विलय :
- भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान ने 14 अगस्त 1947 तक सोचा कि वह कैसे निर्णय लें। जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद पेश किया था और वह वहाँ आने की प्रस्तावना देने के साथ ही भोपाल के नवाब बनने की पेशकश दी थी, लेकिन वह इस सुझाव को नकार दिया।
- भोपाल का विलय आखिरकार हुआ, और इसके पीछे एक कारण यह भी था कि नवाब हमीदुल्लाह खान ने चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर के रूप में भारत की आंतरिक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और वे नेहरू और जिन्ना के नजदीकी मित्र थे।
- मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को स्वतंत्रता दिलाने का निर्णय लिया। मई 1948 में नवाब ने एक मंत्रीमंडल का घोषणा किया, जिसमें प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय शामिल थे। इस समय तक, भोपाल रियासत में विलीनीकरण के खिलाफ एक समाज का आवाज उठ रहा था, और साथ ही विलीनीकरण की प्रक्रिया पटेल-मेनन जोड़ी के दबाव के तहत थी।
- एक और समस्या यह थी कि चतुरनारायण मालवीय भी विलीनीकरण के पक्ष में थे, और प्रजामंडल विलीनीकरण आंदोलन के प्रमुख दल बन चुका था। अक्टूबर 1948 में, नवाब हज की यात्रा पर जाते समय, भोपाल में प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा फैल गई थी और अनेक लोग गिरफ्तार किए गए थे।
- "29 जनवरी 1949 को, डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा की जेल में गिरफ्तारी के बावजूद, भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान ने आखिरकार एक महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुंचे। उन्होंने भौगोलिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखते हुए यह निर्णय लिया कि भोपाल का स्वतंत्र रहना संभव नहीं है, क्योंकि यह मालवा के करीब है और मध्यभारत का हिस्सा बनने का एक हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने 29 जनवरी 1949 को मंत्रिमंडल को बर्खास्त किया और सत्ता के सभी सूत्र फिर से अपने हाथ में ले लिए।
- इस घटना के साक्षी वीपी मेनन ने इस पूरे दृश्य को भोपाल में ही देखा। वे लाल कोठी (जो अब राजभवन है) में ठहरे रहे और नवाब पर दबाव बना रहे थे। वीपी मेनन के प्रेरणास्पद और स्थिर साथी होने ने इस स्थिति को सुनिश्चित किया कि नवाब के द्वारा लिए गए निर्णय के पीछे का सामर्थ्य बढ़े। अंत में, 30 अप्रैल 1949 को, नवाब ने विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। सरदार पटेल ने नवाब को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी निराशा और दुःख व्यक्त की कि नवाब ने अपने अद्वितीय कौशल और क्षमताओं का उपयोग सही समय पर नहीं किया, जब देश को उनकी आवश्यकता थी।
इस घटना के बाद, 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन गई, और केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर श्री एनबी बैनर्जी ने संचालन संभाला। इसके साथ ही, भोपाल का विलीनीकरण पूरा हो गया, और लगभग 225 साल पुराने नवाबी शासन का अंत हुआ, और भारत के तिरंगे ने लाल कोठी से उतारा जाता है, जो स्वतंत्र भारत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था।"
भारत का एकीकरण कैसे हुआ?
भारत की स्वतंत्रता के दौरान 15 अगस्त, 1947 को , सरदार पटेल ने भारतीय संघ में 562 देशी रियासतों को शामिल करने के लिए प्रयास किए। इस कठिन कार्य में जूनागढ़, हैदराबाद, और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतें स्वेच्छा से भारतीय संघ में शामिल होने की स्वीकृति दी।
भारत में एकीकरण के समय कितनी रियासते थी?
भारत के एकीकरण के 15 अगस्त 1947 समय 562 रियासते थी । उनमें से राजस्थान में 19 रियासत और 3 ठिकाने थे।
स्वतंत्रता के पश्चात देशी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण के समय 'भोपाल' भारत में कैसे शामिल हुआ?
भारतीय लोगों ने भारत के एकीकरण के लिए किस तरह से प्रयास किए?
'लौह पुरुष' किस महापुरुष को कहा जाता है?
भारत का लोह पुरुष "सरदार वल्लभ पटेल " को कहा जाता है । भारत का एकीकरण "सरदार वल्लभ पटेल " ने किया जिसमे 562 देशी रियासत व् 19 ठिकाने थे ।
राजस्थान का एकीकरण कितने चरणों में हुआ ?
"राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया 1948 से 1956 तक सात चरणों में समाप्त हुई। 30 मार्च 1949 को, तत्कालीन राजपूताना की 19 रियासतों और तीन चीफशिप वाले क्षेत्रों को समृद्ध करके राजस्थान का गठन हुआ। इस एकीकरण में कुल 8 वर्ष 7 माह 14 दिन या 3144 दिन लगे। यह प्रक्रिया राजस्थान को एक समृद्ध और एकीकृत राज्य के रूप में स्थापित करने में सफल रही।"