इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है , कब हुई थी शुरुआत जाने सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बंद किया है।

 इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond)

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है। यह एक वचन पत्र की तरह होता है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीद सकता है।इसे 2017 में केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान वित्त विधेयक के रूप में पेश किया गया था। लेकिन 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। इस फंडिंग प्रणाली को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने तत्काल प्रभाव से रोक दिया था। 

उपयोग : 

  • इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीक़े से चंदा देने के लिए किया जाता है। 
  • यह नागरिकों और कंपनियों को निजी रूप से राजनीतिक दलों का समर्थन करने की संभावना देता है, जिससे उनका नाम दानकर्ताओं के लिए गुमनाम रहता है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड विशेष रूप से चुनावी धन के संबंध में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सरकार द्वारा शुरू किया गया है। यह दानकर्ताओं को अपने राजनीतिक दान को गुमनाम रखने का एक माध्यम भी प्रदान करता है।

विशेषता :

  • पंजीकृत कोई भी भारतीय नागरिक या संगठन आरबीआई द्वारा निर्धारित केवाईसी मानदंडों को पूरा करने के बाद इन इलेक्टोरल बॉन्डों को खरीद सकता है। इन्हें चेक या डिजिटल भुगतान के माध्यम से खरीदा जा सकता है।
  • इन बांडों को 15 दिन की समय सीमा के भीतर जारी किया जा सकता है।
  • यदि 15 दिन की समय सीमा पूरी नहीं होती है, तो न तो दाता और न ही प्राप्तकर्ता को रिफंड मिलता है और बॉन्ड का फंड मूल्य प्रधानमंत्री राहत कोष में भेजा जाता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है,current affaairs in hindi,electoral bons banned in india

  • इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है।
  • चुनावी बांड में गुमनामी की सुविधा होती है क्योंकि इसमें दाता और प्राप्तकर्ता का कोई पहचान नहीं होता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: 
  • 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने इसे असंवैधानिक करार दिया। इस निर्णय के बाद, चुनावी बॉन्ड का उपयोग राजनीतिक फंडिंग में सीमित हो गया है।
असंवैधानिकता के कारण: 
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में यह दावा किया कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अनधिकृत धन का प्रवाह हो सकता है, जो चुनावी प्रक्रिया को दांव पर डाल सकता है।