Understanding Lumpy Skin Disease (लम्पी त्वचा रोग): Symptoms, Transmission .
"Lumpy Skin Disease (लम्पी त्वचा रोग): Understanding the Viral Infection"
लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease) एक वायरल संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से पशुओं को प्रभावित करता है। जो CapriPox Virus से होता है, जिसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। पशु की त्वचा पर गांठों का उत्पन्न होना इस रोग की प्रमुख पहचान है, जो पशु को असहनीय सूजन के साथ पीड़ित करता है।साथ पशु में तेज बुखार, श्वसन मार्ग में सूजन व् पैरों में लगड़ापन देखने को मिलता है।कारण (Etiology Of Lumpy Skin Disease) :
लम्पी त्वचा रोग मुख्यतः Poxviridae परिवार के Capripox Virus से होता है, जिसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। LSD Virus एक डबल स्ट्रैंडेड डीएनए (Double-Stranded DNA Virus) वायरस है। इसके अलावा, यह रोग Sheep Pox और Goat Pox वायरस से भी हो सकता है। पॉक्सविरिडे परिवार (Poxviridae Family) के अन्य विषाणुओं की तरह, कैप्रिपोक्सवायरस ईंट के आकार के होते हैं। (Capripoxviruses, like other Poxviridae members, have brick-shaped morphology. ) कैप्रिपोक्सवायरस का औसत आकार 320 nm ✖ 260 nm है। यह एक सक्रामक रोग है जो एक पशु से दूसरे पशु में फैल सकता है।
फैलाव (Lumpy Skin Disease Transmission):
- लम्पी स्कीन डिजीज से संक्रमित जानवरों में, वायरस 11 दिनों के बाद लार में, 22 दिनों के बाद वीर्य में और 33 दिनों के बाद त्वचा के नोड्यूल्स में जीवित रह सकता है।
- लम्पी त्वचा रोग मुख्यता उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता के मौसम में अधिक होता है, खासकर गर्मियों और मानसून के दौरान।
- लम्पी स्कीन डिजीज मुख्यता मच्छर और मक्खी जैसे रक्त-चूसने वाले कीटों द्वारा फैलती है।
- रोगी पशु के रक्त, नाक स्राव, लैक्रिमल स्राव, वीर्य, और लार के माध्यम से भी फैल सकती है।
- यह रोग दूध पिलाने वाले बछड़ों में भी फैल सकता है।
लक्षण (Symptoms Of Lumpy Skin Disease) :
- Formation of Large Nodules: लम्पी त्वचा रोग में, पशुओं के शरीर पर बड़ी गांठें उत्पन्न होती हैं, जो दर्दनाक और असहनीय होती हैं।
- High Fever: रोगी पशु में तेज बुखार (41 C) जो सप्ताह तक बना रहता है।
- Swelling in Internal Organs: श्वसन तंत्र और लिम्फ नोड जैसे आंतरिक अंगों में सूजन हो सकती है। जिससे पता लगाया जा सकता की रोगी पशु किस अवस्था में है।
- Reduced Milk Production: दूधदार पशुओं में रोग के परिणामस्वरूप दूध की उत्पादन में कमी हो सकती है।
- Development of Ulcers: गांठों के उत्पन्न होने के एक से दो सप्ताह के भीतर, अल्सर शरीर के विभिन्न हिस्सों पर उत्पन्न होते हैं, विशेषकर सिर, गर्दन, जांघों और जननांगों पर।
- Persistent Skin Damage: प्रभावित पशुओं की त्वचा स्थायी रूप से खराब होती है, जिससे उनका वाणिज्यिक मूल्य कम हो जाता है।
- Variation in Susceptibility : स्थानीय प्रजातियों उच्च त्वचा रोग के प्रति विदेशी प्रजातियों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं। इससे पता लग जाता रोग प्रतिरोधक क्षमता विदेशी गाय के तुलना में देशी गाय में अधिक होती है।
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निदान (Diagnosis and Management of LSD) :
1. लक्षणों द्वारा (By Symptoms):
- रोग के लक्षणों के आधार पर निदान किया जा सकता है।
2. एलाइसा (ELISA - enzyme-linked immunosorbent assay):
- ELISA एक मुख्य निदान उपकरण है जो एंटीबॉडी स्तर को मापने के लिए प्रयुक्त होता है।
- यह टेस्ट वायरल इन्फेक्शन का निदान करने के लिए अत्यधिक सुरक्षित और विश्वसनीय होता है।
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3. इम्यूनोपेरोक्सीडेज का परीक्षण (IPMA):
- IPMA में LSD वायरस से संक्रमित ऊतकों की जाँच की जाती है।
4. वायरस न्यूट्रलाइजेशन परीक्षण (Virus Neutralisation Test):
- यह परीक्षण विशिष्ट रोगप्रतिरोधक एंटीबॉडी की मौजूदगी का निर्धारण करने के लिए किया जाता है।
- इसका उपयोग "Lumpy Skin Disease" में वायरस निदान के लिए किया जाता है।
ईलाज (Lumpy Skin Disease Treatment):
- LSD रोग का कोई सटीक इलाज नहीं है। (No Effective Treatment)
- लम्पी स्कीन डिजीज के शुरुआती समय में Secondary Infections को रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जा सकता है।
वैक्सीन (Lumpy Skin Disease Vaccine) :
- "Lumpy Skin Disease" के लिए सबसे प्रभावी टीका "Neethling Strain" है। यह टीका उपयुक्त आयु में दी जाती है ताकि पशु को संक्रामकता से पूरी तरह से सुरक्षा मिल सके।
- Neethling Strain Vaccine को 6 महीने की आयु के बछड़ों में दिया जाता है।
- यह टीका विशेष रूप से गायों के लिए अधिक प्रभावी माना जाता है। इसके साथ ही, यह वैक्सीन पशु में 3 साल तक Immunity प्रदान करती है।
- अन्य वेक्सीन : Goat Pox Vaccine (GTPV) , Lumpy-Pro-Vac-Ind Vaccine .
नियंत्रण और बचाव (Control Measures) :
- LSD Virus के फैलाव को रोकने के लिए Ether (20%), chloroform, formalin (1%), detergents (sodium dodecyl sulfate), और phenol (2% for 15 minutes) का उपयोग किया जाना उचित है।
- रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखना चाहिए।
- पशु फार्म में सप्ताह में एक बार formalin (1%) का छिड़काव करना चाहिए।
- रोगी पशु के दूध को बछड़े को न पिलाना चाहिए, बल्कि उसे रोगी पशु से दूर रखना चाहिए ताकि बछड़े में सक्रमण न फैले।
- लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease) के प्रति वैक्सीन अवश्य लगवाए ताकि भविष्य में इसका प्रसार न हो।
"Lumpy Skin Disease (लम्पी त्वचा रोग) is a viral infection affecting mainly animals. Learn about its causes, symptoms, transmission, and management strategies in this comprehensive guide."
लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease) क्या है?
लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease) एक वायरल संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से पशुओं को प्रभावित करता है। जो CapriPox Virus से होता है, जिसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। पशु की त्वचा पर गांठों का उत्पन्न होना इस रोग की प्रमुख पहचान है, जो पशु को असहनीय सूजन के साथ पीड़ित करता है।
लम्पी त्वचा रोग के लक्षण क्या हैं?
लक्षण में त्वचा पर बड़ी गांठों का उत्पन्न होना, उच्च बुखार, आंतरिक अंगों में सूजन, दूध की उत्पादन में कमी, अल्सर का विकास और त्वचा की स्थायी हानि शामिल है।
लम्पी त्वचा रोग के लिए कौन-कौन सी टीके उपलब्ध हैं?
लम्पी त्वचा रोग के लिए सबसे प्रभावी टीका नीथलिंग स्ट्रेन वायरस (Neethling Strain Vaccine) है। यह पशुओं के लिए विशेष रूप से प्रभावी है और तीन साल तक प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
अन्य वेक्सीन : Goat Pox Vaccine (GTPV) , Lumpy-Pro-Vac-Ind Vaccine
लम्पी त्वचा रोग कैसे प्रसारित होता है?
लम्पी त्वचा रोग मुख्य रूप से मच्छर और मक्खी जैसे रक्त-चूसने वाले कीटों के माध्यम से प्रसारित होता है।
लम्पी त्वचा रोग के पोस्ट-मॉर्टेम लेशन क्या हैं?
पोस्ट-मॉर्टेम लेशन में त्वचा में गहरी गांठें, मुंह और नाक में पीड़ा, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में पीड़ा, सामान्य अंगों में पीड़ा और Synovitis (जोड़ो की synovial श्लेष्मा झिल्ली में सूजन आना ) व् tenosynovitis (टेंडन के श्लेष्मा झिल्ली में सूजन आना ) साथ जोड़ो में फाइब्रिन (Fibrin) जम जाता है।
क्या लम्पी त्वचा रोग मनुष्यों को संक्रामित कर सकता है?
नहीं, लम्पी त्वचा रोग मनुष्यों को संक्रामित नहीं कर सकता। यह मुख्य रूप से पशुओं को प्रभावित करता है।