भगत सिंह का जीवन परिचय | The Legend of Bhagat Singh Story In Hindi
1.Introduction / परिचय :
Table of Contents
2. जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
- वह एक देशभक्त सिख परिवार से थे और भारत की आजादी के संघर्ष में अपने परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए बलिदान से बहुत प्रभावित थे।
- उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक किसान परिवार से थे। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए से गहरे प्रभावित किया।
- भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज़ में पढ़ाई छोड़कर भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। 1922 में चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद, जब गाँधी जी ने किसानों का साथ नहीं दिया, तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। इसके बाद, उनका अहिंसा से विश्वास कमजोर हो गया और उन्होंने सशस्त्र क्रांति का समर्थन किया।
- भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गदर दल के हिस्सा बनते हुए काकोरी काण्ड में भाग लिया। उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य नवयुवकों को सेवा, त्याग, और पीड़ा का सामना करने के लिए तैयार करना था।
3. जलियांवाला बाग नरसंहार :
- उस समय, जब जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ, भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे। इस घड़ी में उनकी भावनाएं तेज थीं और उन्होंने अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए।
- इस आंधोलनी घड़ी में, भगत सिंह ने अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ीं और सोचते रहे कि क्या उनका रास्ता सही है या नहीं।
- गांधी जी के असहयोग आंदोलन के बाद, जब भगत सिंह ने इस आंदोलन को छोड़ा, तब उन्होंने गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आंदोलन में से अपने लिए रास्ता चुना।
- गांधी जी के असहयोग आंदोलन को छोड़ने के बाद, उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ, पर वे महात्मा गांधी का सम्मान करते थे, जैसा कि पूरे राष्ट्र ने किया।
- भगत सिंह ने जुलूसों में भाग लेना शुरू किया और कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।
- भगत सिंह ने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जोड़ लिया और इसे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदल दिया।
4. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए):
- भगत सिंह एचएसआरए में शामिल हुए, जो सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए समर्पित एक क्रांतिकारी संगठन था।
- वह एक सक्रिय सदस्य बन गए और स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थे।
- 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुए, जिसमें एचएसआरए द्वारा लगाए गए परचे के खिलाफ लोगों की आवाज उठी। इन प्रदर्शनों में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। इसी लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
- अब इनसे रहा न गया। एक गुप्त योजना के तहत इन्होंने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना सोची। सोची गई योजना के अनुसार भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे।
- उधर जयगोपाल अपनी साइकिल को लेकर ऐसे बैठ गए जैसे कि वह ख़राब हो गई हो। गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गए। उधर चन्द्रशेखर आज़ाद पास के डी० ए० lवी० स्कूल की चहारदीवारी के पास छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे।
- 17 दिसंबर 1928 को, साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय, भगत सिंह और राजगुरु ने ए० एस० पी० सॉण्डर्स को उनके सर में गोली मारी, जिससे वह तत्काल मर गए।
- इस घड़ी में चन्द्रशेखर आज़ाद ने भी इस प्रकार गोली दागी, जिससे उनका भी अंत हो गया। इस दृढ़ता और साहस भरे कदम के बाद, इन वीरों ने लाला लाजपत राय की मौत का प्रतिशोध लेने में सफलता प्राप्त की।
- भगत सिंह का मानना था कि लाजपत राय की मौत के लिए सॉन्डर्स जिम्मेदार थे।
5. सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली बमबारी:
- भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को मारा था, जो एक अंग्रेज़ अधिकारी थे।
- इस बहादुरी से भरे कदम के पीछे था क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद का बड़ा हाथ।
- भगत सिंह चाहते थे कि उनके कार्रवाई से खूनखराबा न हो, और उनकी आवाज़ अंग्रेजों तक पहुंचे। प्रारंभ में उनके दल के सभी सदस्य इस विचार में सहमत नहीं थे, लेकिन अंत में सभी ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना।
- निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, 8 अप्रैल 1929 को, वे एक ऐसे स्थान पर बम फेंकने का कार्य करने गए जहां कोई नहीं था, ताकि कोई चोट न लगे। पूरा स्थान ही भगत सिंह के द्वारा धूप से भर गया। भगत सिंह को बचने का भी विचार था, लेकिन उन्होंने पहले से सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार है, चाहे वह फाँसी हो या कुछ और; इसलिए उन्होंने भागने से मना कर दिया।
- उस समय, वे खाकी कमीज़ और निकर पहने हुए थे। बम फटने के बाद, उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया और अपने साथ लाए हुए पर्चे को हवा में उछाला। थोड़ी देर बाद पुलिस आ गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- इस दृढ़ता भरे कदम के परंपरागत पीछे, वे दोनों ही गिरफ्तार हो गए। इस हेर-फेर के बाद भगत सिंह और उनके साथी ने अपने प्रिय देश के लिए उन्मुक्ति की ओर एक और दृढ़ कदम बढ़ाया।
6. गिरफ्तारी और कारावास:
- भगत सिंह और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर असेंबली बम विस्फोट के लिए मुकदमा चलाया गया।
- मुकदमे के दौरान, भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने अपने उद्देश्य को बढ़ावा देने और स्वतंत्रता की वकालत करने के लिए अदालत कक्ष को एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया।
7. जेल में भूख हड़ताल:
- जेल में रहते हुए भगत सिंह करीब 2 सालों तक अपने विचारों को लेखन द्वारा व्यक्त करते रहे। इस समय में उन्होंने अपने क्रान्तिकारी दृष्टिकोणों को साझा करने के लिए कई लेख लिखे। जेल में रहते हुए भी, उनका अध्ययन कार्य निरंतर जारी रहा।
- उनके द्वारा लिखे गए लेख और उनके संबंधित लोगों को भेजे गए पत्र आज भी उनके विचारों को समर्थन करते हैं। उनके लेखों में, उन्होंने कई तरीकों से पूंजीपतियों को अपना शत्रु माना है। उन्होंने लिखा है कि मजदूरों का शोषण करने वाला, चाहे वह भारतीय हो या कोई और, वह उनका शत्रु है।
- जेल में रहते हुए, उन्होंने अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा, जिसका शीर्षक था "मैं नास्तिक क्यों हूँ?"। जेल में भगत सिंह और उनके साथी ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की, जिसमें उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
"जेल की यादों में बसी हमारी आजादी की तलवार, शहीद भगत सिंह की आत्मा हमारे दिलों में दमकती रहेगी, आज भी और हमेशा।"
8. फांसी:
- " 26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। "
- फाँसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फाँसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी, 1931 को अपील दायर की कि वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा माफ कर दें।
- भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गाँधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तर्को के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की। यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्यों कि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।
- 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए।
- कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिए ! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
- फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आए।
- इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गए। जब गाँव वाले पास आए तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया। और भगत सिंह हमेशा के लिए अमर हो गये। इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गाँधी को भी इनकी मौत का जिम्मेवार समझने लगे।
9. विरासत:
- भगत सिंह के बलिदान और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया।
- जेल के दिनों में, भगत सिंह ने अपने लेखों और खतों के माध्यम से भारतीय समाज में लिपि, जाति, और धर्म के कारण आई दूरियों को दुखद रूप से व्यक्त किया। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर अंग्रेज़ शासन के प्रति उसी ताक़त से आपत्ति जताई, जिससे उन्होंने अत्याचारों को देखा था।
- भगत सिंह को बहुतलीय भाषाओं का ज्ञान था, जिसमें हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और बांग्ला शामिल था। उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से बांग्ला सीखा था। उनका यह विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता जागृत होगी और इससे उनकी मौत का मतलब बनेगा। इसी कारण उन्होंने मौत के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से इनकार किया।
उनकी कविता से उनके शौर्य का स्पष्ट अंदाज़ होता है, जैसे:
- चन्द्रशेखर आजाद से मिलने पर, उन्होंने कसम खाई थी कि उनकी जिन्दगी देश के लिए ही कुर्बान होगी, और इस कसम को उन्होंने पूरा किया। उन्हें बहादुरी, देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। उनका जीवन और कार्य भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।
- उनके उदाहरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि सुधार युवाओं की मेहनत, साहस, बलिदान, और निष्ठा से होता है। भगत सिंह के विचार हमें यह सिखाते हैं कि हमें सदैव नए उच्चतमों की ओर प्रगति करना चाहिए, चाहे दुनिया कितनी भी मुश्किलों से भरी क्यों ना हो।
10. शहीद दिवस:
- 23 मार्च, भगत सिंह की फाँसी का दिन, उनके और उनके साथियों के बलिदान का सम्मान करने के लिए भारत में शहीद दिवस (शहीद दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
- दक्षिण भारत के नेता पेरियार ने अपने साप्ताहिक पत्र "कुड़ाई आरसू" के मार्च १९३१ के अंक में तमिल में एक संपादकीय लेख में भगत सिंह की प्रशंसा की और उनकी "मैं नास्तिक क्यों हूँ?" पर रचित लेख को उच्चतम मानी। इसमें उन्होंने भगत सिंह की शहादत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक जीत के रूप में देखा गया।
- आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में मानती है, जिन्होंने अपनी जवानी सहित पूरी जिन्दगी देश के लिए समर्पित कर दी। उनका यह बलिदान आज भी हमारी आत्मा में उत्साह और गर्व पैदा करता है।
- उनका जीवन और संघर्ष ने कई हिन्दी फ़िल्मों के चरित्रों को प्रेरित किया है, जिससे युवा पीढ़ी को उनकी शौर्यगाथा से प्रेरणा मिलती है। उनकी वीरता और देशभक्ति की भावना हर भारतीय के दिल में बसी है, और उन्हें आज भी सम्मान और श्रद्धांजलि दी जाती है।
11. लोकप्रियता:
"लोग यह भी पूछते हैं"
भगत सिंह का नारा कौन सा है?
भगत सिंह का नारा "इंकलाब जिंदाबाद!" था। इस नारे का मतलब होता है "क्रांति जिंदाबाद" या "दल दल दल" और यह उनका सबसे प्रसिद्ध नारा था। इस नारे के माध्यम से वह लोगों को यह समझाते थे कि वे स्वतंत्रता संग्राम में समर्थ हैं और उन्हें आजादी की ओर बढ़ना होगा।
भगत सिंह ने मरते समय क्या कहा था?
भगत सिंह ने अपने जीवन के आखिरी पलों में जब वह फाँसी के खतरे में थे कहा "इंकलाब जिंदाबाद!" "मेरा दिल राजगद के लिए धड़क रहा है!" "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाना होगा!" भगत सिंह की ये आख़री बातें उनके देशभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके अथक समर्थन का प्रतीक बनी। वे अपनी जान की बालि चढ़ा देने को तैयार थे लेकिन उनकी आत्मा ने उनके शब्दों से स्पष्ट रूप से दिखाया कि वे अपने देश के लिए पूरी तरह से समर्थ थे।
भगत सिंह का केस लड़ने वाला वकील कौन था?
भगत सिंह के केस के समय, उनके पक्ष के वकील का नाम आसफ अली था, जबकि सरकार के पक्ष के वकील का नाम राय बहादुर सूर्यनारायण शर्मा था। इस मामले में आसफ अली ने भगत सिंह की पक्ष से केस लड़ा था, जबकि राय बहादुर सूर्यनारायण शर्मा सरकार की तरफ से मुकदमा चलाने वाले वकील थे। उन्होंने भगत सिंह को फांसी से बचाने के लिए मुकदमा लड़ा था।
भगत सिंह ने किसको और क्यों मारा?
भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारी थी एक बदले के रूप में लाला लाजपत राय की मौत का। इस समय, एक लॉ स्टूडेंट ने एक दायर याचिका में कहा कि भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारने के बाद हेड कांस्टेबल चानन सिंह ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया था, लेकिन उसी समय चंद्रशेखर आजाद ने चानन सिंह की जांघ में गोली मारी थी, जिससे वे भगत सिंह को बचाने में सफल रहे।